एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस ADM Jabalpur Vs Shivkant Shukla Case

ADM Jabalpur Vs Shivkant Shukla Case हॅलो ! इस पोस्ट में हम आपको एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस क्या हैं इसके बारे में जानकारी देने वाले हैं। एडीएम जबलपुर केस को बंदी प्रत्यक्षीकरण केस इस नाम से भी जाना जाता है। यह केस आपातकाल के समय की हैं। इंदिरा गांधी सरकार के द्वारा आपातकाल लगवाया गया था। उस समय सरकार द्वारा लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए थे। उसी मौलिक अधिकारों को बचाने के लिए एडीएम जबलपुर यह केस लडा़ गया था।

ADM Jabalpur Vs Shivkant Shukla Case

एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस ADM Jabalpur Vs Shivkant Shukla Case

इस केस में सुनाया गया हुआ फैसला ऐतिहासिक था। यह मौलिक अधिकारों को बचाने के लिए लडा गया हुआ ऐतिहासिक केस हैं। यह केस उन केसों में से एक हैं जिसके वजह से न्यायिक प्रणाली में जनहित याचिका की जरूरत महसूस होने लगी। इसी केस के बाद हमारे भारत देश में जनहित याचिका की शुरुआत हुई। एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस के बारे में विस्तार में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी पोस्ट अंत तक जरुर पढिए।

एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस –

एडीएम जबलपुर केस को बंदी प्रत्यक्षीकरण केस इस नाम से भी जाना जाता है। यह केस आपातकाल के समय की हैं। इंदिरा गांधी सरकार के द्वारा 25 जून 1975 को आपातकाल लगवाया गया था। यह आपातकाल 25 जून 1975 से लेकर 21 मार्च 1977 तक 21 महिनों के लिए लागू रखा था।

उस समय सरकार द्वारा लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए थे। उसी मौलिक अधिकारों को बचाने के लिए एडीएम जबलपुर यह केस लडा़ गया था। इस केस में सुनाया गया हुआ फैसला ऐतिहासिक था। यह मौलिक अधिकारों को बचाने के लिए लडा गया हुआ ऐतिहासिक केस हैं। यह केस उन केसों में से एक हैं जिसके वजह से न्यायिक प्रणाली में जनहित याचिका की जरूरत महसूस होने लगी। इसी केस के बाद हमारे भारत देश में जनहित याचिका की शुरुआत हुई।

यह केस इंदिरा गांधी की हैं। इंदिरा गांधी की लोकसभा में जीत को लेकर इलाहाबाद कोर्ट में मुकदमा दर्ज किया गया था। इंदिरा गांधी को चुनाव में गड़बड़ी का दोषी पाया गया था। न्यायमूर्ति सिन्हा ने यह फैसला दिया की इंदिरा गांधी अगले छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकती। बाद में इंदिरा गांधी सुप्रीम कोर्ट में गई।

सुप्रीम कोर्ट में इंदिरा गांधी को रिलीफ नहीं मिला। इसके बाद इंदिरा गांधी ने अलग रास्ता अपनाने का निर्णय लिया। देश के आंतरिक सुरक्षा का हवाला दिया और आपत्काल की घोषणा की गई। इस आपत्काल में बहुत नेताओं को जेल में डाला गया। जैसे की मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेई और अन्य नेता।

मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेई और अन्य नेताओं को बिना मुकदमे के हिरासत में लिया गया इसलिए उन्होंने उच्च न्यायालय न्यायालय में चुनौती दी। इस मामले में मीसा एक्ट के तहत कार्यवाही की गई। इनके एक वकील का नाम था शिवकांत शुक्ला। इनमें से ज्यादा से ज्यादा नेताओं को उच्च न्यायालय में राहत मिली।

उच्च न्यायालय में व्यक्तीगत स्वतंत्रता को वरीयता दी गई। आगे यह केस सुप्रीम कोर्ट में गई। सुप्रीम कोर्ट में इस केस को एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला यह नाम मिला। सुप्रीम कोर्ट ने एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला इस मामले में दी गई वरीयता को खारीज कर दिया। यह फैसला 5 न्यायाधीशों के बेंच द्वारा सुनाया गया था। इसमें से 4 जज इस फैसले के पक्ष में थे और 1 जज इस फैसले के खिलाफ थे‌। उन्होनें इस फैसले के खिलाफ अपना मत दिया।

उन्होंने कहा की संविधान के अनुच्छेद 21 में जो जीवन का अधिकार दिया हैं उससे किसी को भी वंचित नहीं किया जा सकता। यह आदेश देने के बाद 42 साल के बाद पुट्टस्वामी केस में सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में फिर एक बार व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बहाल किया।

अनुच्छेद 21-

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार दिया हुआ हैं। यह अनुच्छेद बहुत ही महत्वपूर्ण है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के सिवाय किसी भी व्यक्ती को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं रखा जाएगा।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार दिया हुआ है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 को ‘मौलिक अधिकारों का हृदय’ कहां हैं।

अनुच्छेद 358-

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 358 जैसे बहुत अनुच्छेद हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 358 के अनुसार अगर देश में कोई भी आपातकालीन स्थिति आती हैं तो उस समय में सर्वोच्च न्यायालय देश या राज्य को विनियमित करने के लिए आदेश दे सकता हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 358 के अनुसार जब देश में आपातकाल की घोषणा की जाती हैं तब मौलिक अधिकार निलंबित किए जाते हैं। अनुच्छेद 358 पुरे देश में लागू होता हैं।

अनुच्छेद 359 –

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 बाहरी आपतकाल के साथ साथ आंतरिक आपातकाल में भी लागू हो सकता हैं। अनुच्छेद 359 पुरे देश पर या देश के किसी हिस्से पर लागू किया जा सकता है। जैसे अनुच्छेद 358 में पुरे अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जाता है वैसे अनुच्छेद 359 में नहीं होता। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 और 21 के प्रवर्तन को निलंबित करने का आदेश नहीं देता हैं।

FAQ

एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला यह केस क्या हैं ?

एडीएम जबलपुर केस को बंदी प्रत्यक्षीकरण केस इस नाम से भी जाना जाता है। यह केस आपातकाल के समय की हैं। इंदिरा गांधी सरकार के द्वारा आपातकाल लगवाया गया था। उस समय सरकार द्वारा लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए थे। उसी मौलिक अधिकारों को बचाने के लिए एडीएम जबलपुर यह केस लडा़ गया था।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 क्या हैं ?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार दिया हुआ हैं। यह अनुच्छेद बहुत ही महत्वपूर्ण है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के सिवाय किसी भी व्यक्ती को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं रखा जाएगा।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 358 क्या हैं ?

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 358 जैसे बहुत अनुच्छेद हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 358 के अनुसार अगर देश में कोई भी आपातकालीन स्थिति आती हैं तो उस समय में सर्वोच्च न्यायालय देश या राज्य को विनियमित करने के लिए आदेश दे सकता हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 358 के अनुसार जब देश में आपातकाल की घोषणा की जाती हैं तब मौलिक अधिकार निलंबित किए जाते हैं।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 क्या हैं ?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 बाहरी आपतकाल के साथ साथ आंतरिक आपातकाल में भी लागू हो सकता हैं। अनुच्छेद 359 पुरे देश पर या देश के किसी हिस्से पर लागू किया जा सकता है। जैसे अनुच्छेद 358 में पुरे अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जाता है वैसे अनुच्छेद 359 में नहीं होता। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 और 21 के प्रवर्तन को निलंबित करने का आदेश नहीं देता हैं।

इस पोस्ट में हमने आपको एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस क्या हैं इसके बारे में जानकारी दी हैं। हमारी पोस्ट शेयर जरुर किजिए। धन्यवाद !

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