BNS Section 36 In Hindi हॅलो ! इस पोस्ट में हम आपको भारतीय न्याय संहिता (Bhartiya Nyay Sanhita) की धारा 36 क्या हैं ( What is BNS Section 36 in Hindi) इसके बारे में जानकारी देने वाले हैं। पहले हमारे देश में भारतीय दंड संहिता यह कानून था। लेकिन अब इसकी जगह भारतीय न्याय संहिता ने ली हैं। अभी संसद द्वारा पारित तीन विधेयकों ने अब कानून का रूप लिया हैं। भारतीय दंड संहिता को अंग्रेजों ने लागू किया था। अंग्रेजों के समय से भारत में भारतीय दंड संहिता लागू थी।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 36 क्या हैं ? BNS Section 36 In Hindi
अंग्रेजों के काल से जो आपराधिक कानून भारत में लागू थे उनकी जगह लेने वाले तीन संशोधन विधेयकों पर कुछ ही दिन पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दी। अब भारतीय दंड संहिता की जगह भारतीय न्याय संहिता ने ली हैं। भारतीय न्याय संहिता की धारा 36 में ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो मानसिक रूप से रुग्ण हो इसके बारे में जानकारी दी है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 36 क्या हैं इसके बारे में विस्तार में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी यह पोस्ट अंत तक जरुर पढ़िए।
भारतीय न्याय संहिता (Bhartiya Nyay Sanhita) की धारा 36 क्या हैं ( What is BNS Section 36 in Hindi) ?-
भारतीय न्याय संहिता की धारा 36 में ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो मानसिक रूप से रुग्ण हो इसके बारे में जानकारी दी है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 36 के अनुसार जब कोई कार्य, जो अन्यथा कोई अपराध होता, उस कार्य को करने वाले व्यक्ती के बालकपन, समझ की परिपक्वता के अभाव, मानसिक रूप से रुग्ण या मतता के कारण, या उस व्यक्ती के किसी भ्रम के कारण, वह अपराधी नहीं हैं, तब हर व्यक्ती उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता हैं, जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता।
दृष्टांत –
क) य, पागलपन के असर में, क को जान से मारने का प्रयत्न करता हैं। य किसी अपराध का दोषी नहीं हैं। किंतु क को प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार हैं, जो वह य के स्वस्थचित होने की दशा में रखता।
ख) क रात्रि में एक ऐसे घर में प्रवेश करता हैं जिसमें प्रवेश करने के लिए वह वैध रूप से हकदार हैं। य, सद्भावपूर्वक क को गृह-भेदक समझकर , क पर आक्रमण करता हैं। यहां य इस भ्रम के अधीन क पर आक्रमण करके कोई अपराध नहीं करता हैं किंतु क, य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता हैं, जो वह तब तक रखता, जब य उस भ्रम के अधीन कार्य न करता।
FAQ
भारतीय न्याय संहिता में कितनी धारा हैं ?
भारतीय न्याय संहिता में 356 धारा हैं।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 36 में किस बारे में जानकारी दी गई है ?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 36 में ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो मानसिक रूप से रुग्ण हो इसके बारे में जानकारी दी है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 36 क्या हैं ?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 36 के अनुसार जब कोई कार्य, जो अन्यथा कोई अपराध होता, उस कार्य को करने वाले व्यक्ती के बालकपन, समझ की परिपक्वता के अभाव, मानसिक रूप से रुग्ण या मतता के कारण, या उस व्यक्ती के किसी भ्रम के कारण, वह अपराधी नहीं हैं, तब हर व्यक्ती उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता हैं, जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता।
इस पोस्ट में हमने आपको भारतीय न्याय संहिता की धारा 36 क्या हैं इसके बारे में जानकारी दी है। हमारी पोस्ट शेयर जरुर किजिए। धन्यवाद !