भारतीय दंड संहिता की धारा 86 क्या हैं ? IPC Section 86 In Hindi

IPC Section 86 In Hindi हॅलो ! इस पोस्ट में हम आपको भारतीय दंड संहिता की धारा 86 क्या हैं इसके बारे में जानकारी देने वाले हैं । भारतीय दंड संहिता की धारा 86 में किसी भी व्यक्ती द्वारा जो मत्तता में हैं उसके द्वारा किया हुआ अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान होना आवश्यक होता हैं इसके बारे में जानकारी दी हैं । इस पोस्ट में हम आपको इसी के बारे में जानकारी देने वाले हैं ।

IPC Section 86 In Hindi

भारतीय दंड संहिता की धारा 86 क्या हैं ? IPC Section 86 In Hindi

भारतीय दंड संहिता की धारा 86 क्या हैं ? –

भारतीय दंड संहिता की धारा 86 में किसी भी व्यक्ती द्वारा जो मत्तता में हैं उसके द्वारा किया हुआ अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान होना आवश्यक होता हैं इसके बारे में जानकारी दी हैं । भारतीय दंड संहिता की धारा 86 के अनुसार “उस परिस्थिति में जहां किया हुआ कार्य अपराध नहीं होता जब तक वह कार्य विशिष्ट ज्ञान और आशय से नहीं किया गया हैं , कोई भी व्यक्ती जो वह कार्य मत्तता की हालत में करता हैं , इस प्रकार बरते जाने के दायित्व के अधिन होंगे , मान लिजिए उसको वहीं ज्ञान था जो उसे होता अगर वह मत्तता में नहीं होता जब तक की वह चीज जिससे उसे मत्तता हूई थी , उसे उसके ज्ञान के सिवाय या उसकी इच्छा के विरुद्ध न दी गई हो ।”

अब हम आपको इस धारा को आसान भाषा में समझाते हैं । भारतीय दंड संहिता की धारा 86 में यह कहा गया हैं की अगर कोई व्यक्ति किसी खास मकसद से कोई कार्य करता हैं लेकिन जब वह वह कार्य करता हैं तब नशे की हालत में होता हैं तब ऐसा ही माना जाएगा की नशें में होने के बावजूद भी उसका यह कार्य करने का खास मकसद था । जब तक की यह साबित नहीं किया जाता की जो उसको नशा चढ़ा हैं वह उसको उसके इच्छा के विरुद्ध कराया गया है ‌।

इस पोस्ट में हमने आपको भारतीय दंड संहिता की धारा 86 के बारे में जानकारी दी हैं । हमारी यह पोस्ट शेयर जरुर किजिए । धन्यवाद !

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