IPC Section 98 In Hindi भारतीय दंड संहिता की धारा 97 क्या हैं ? हॅलो ! इस पोस्ट में हम आपको भारतीय दंड संहिता की धारा 98 के बारे में जानकारी देने वाले हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा 98 में इस तरह के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के बारे में जानकारी दी हैं जो व्यक्ती विकृतचित्त आदी हो। इस पोस्ट में हम आपको इसी के बारे में जानकारी देने वाले हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 98 क्या हैं ? IPC Section 98 In Hindi
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 98 क्या हैं ? –
भारतीय दंड संहिता की धारा 98 में इस तरह के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के बारे में जानकारी दी हैं जो व्यक्ती विकृतचित्त आदी हो। भारतीय दंड संहिता की धारा 98 के अनुसार जब कोई भी कार्य जो अन्यथा एक निश्चित अपराध हैं, वह अपराध नहीं हैं, जो युवा अवस्था के वजह से, दिमाग की अस्वस्थता, समझ में कम परिपक्वता, कोई गलत धारणा या नशा के वजह से उस व्यक्ती की तरफ से, हर व्यक्ती को वह कार्य के खिलाफ प्राइवेट प्रतिरक्षा को वहीं अधिकार होगा जो उसके पास होता अगर वह कार्य अपराध होता।
उदाहरण –
1) मान लिजीए की A नाम का एक व्यक्ती हैं और वह पागल हैं। A नाम का व्यक्ती B इस व्यक्ती को मारने का प्रयास करता हैं। अब ऐसी परिस्थिति में A को दोषी नहीं माना जाएगा। लेकिन B इस व्यक्ती को प्राइवेट प्रतिरक्षा का उतना ही अधिकार हैं जितना उसको A के स्वस्थचित्त होने की दशा में होता। ऐसे मामले में अगर B को अपने बचाव के लिए A को कोई क्षती पहुंचाने पड़े तो भी B को भारतीय दंड संहिता की धारा 98 के द्वारा प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार मिलेगा।
2) A यह व्यक्ती रात के समय में एक घर में प्रवेश करता हैं और उस घर में प्रवेश करने का उसे वैध अधिकार हैं। उस घर में B नाम का एक व्यक्ती रहता हैं और उसे ऐसा लगता हैं की A चोर हैं और वह A पर हमला कर देता हैं। इसलिए ऐसा माना जाएगा की B ने कोई अपराध नहीं किया हैं। लेकिन यहां A इस व्यक्ती को B इस व्यक्ती के विरुद्ध में प्राइवेट प्रतिरक्षा का उतना ही अधिकार हैं जितना उसे तब होता जब B इस व्यक्ती ने अपने भ्रम में कोई कार्य नहीं करता।
इस पोस्ट में हमने आपको भारतीय दंड संहिता की धारा 98 के बारे में जानकारी दी हैं। हमारी यह पोस्ट शेयर जरुर किजिए। धन्यवाद !