भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 क्या हैं ? What Is Article 21 Of Indian Constitution?

What Is Article 21 Of Indian Constitution? हॅलो ! इस पोस्ट में हम आपको भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 क्या हैं इसके बारे में जानकारी देने वाले हैं। हर देश को सुचारू रुप से चलवाने के लिए संविधान की आवश्यकता होती हैं। संविधान को देश का सर्वोच्च कानून माना जाता हैं। देश के संचालन और विकास में संविधान के द्वारा महत्त्वपूर्ण भुमिका निभाई जाती हैं।

What Is Article 21 Of Indian Constitution?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 क्या हैं ? What Is Article 21 Of Indian Constitution?

हर देश में संविधान की बहुत जरूरत होती हैं। जब भारतीय संविधान को बनवाया गया था तब भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थी। अब भारतीय संविधान में 448 अनुच्छेद हैं और 12 अनुसूचियां हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 बहुत महत्वपूर्ण हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के संबंधित हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 क्या हैं इसके बारे में विस्तार में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी पोस्ट अंत तक जरुर पढिए।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 क्या हैं ?-

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 बहुत महत्वपूर्ण हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के संबंधित हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के सिवाय किसी भी व्यक्ती को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं रखा जाएगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार दिया हुआ है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 को ‘मौलिक अधिकारों का हृदय’ कहां हैं।

अनुच्छेद 21 की महत्वपूर्ण केस –

  • एके गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1950) : रोकथाम हिरासत –

एके गोपालन बनाम मद्रास राज्य इस केस में याचिकाकर्ता एक कम्युनिस्ट नेता थे। इन्हें निवारक हिरासत अधिनियम 1950 के तहत हिरासत में लिया गया। याचिकाकर्ता ने यह दावा किया की यह हिरासत अवैध थी। इससे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (डी) का उल्लंघन है रहा था। अनुच्छेद 21 में दिए हुए उनके व्यक्तिगत स्वतंत्रता का भी उल्लंघन हुआ था। क्योंकी आवाजाही स्वतंत्रता को हर व्यक्ती के व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा मानना चाहिए।

निर्णय

इस मामले में अदालत ने यह निर्णय दिया की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अर्थ भौतिक शरीर की स्वतंत्रता यह हैं। इस वजह से इसमें अनुच्छेद 19(1) के तहत दिए हुए अधिकार शामिल नहीं हैं। व्यक्तिगत स्वतंत्रता में कुछ अधिकारों को शामिल माना जाता था जैसे की खाने का अधिकार, सोने का अधिकार आदी। स्वतंत्र रुप से घुमने का अधिकार भी मामुली था। यह किसी के भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में सम्मिलित नहीं था।

एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस –

एडीएम जबलपुर केस को बंदी प्रत्यक्षीकरण केस इस नाम से भी जाना जाता है। यह केस आपातकाल के समय की हैं। इंदिरा गांधी सरकार के द्वारा 25 जून 1975 को आपातकाल लगवाया गया था। यह आपातकाल 25 जून 1975 से लेकर 21 मार्च 1977 तक 21 महिनों के लिए लागू रखा था।

उस समय सरकार द्वारा लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए थे। उसी मौलिक अधिकारों को बचाने के लिए एडीएम जबलपुर यह केस लडा़ गया था। इस केस में सुनाया गया हुआ फैसला ऐतिहासिक था। यह मौलिक अधिकारों को बचाने के लिए लडा गया हुआ ऐतिहासिक केस हैं। यह केस उन केसों में से एक हैं जिसके वजह से न्यायिक प्रणाली में जनहित याचिका की जरूरत महसूस होने लगी। इसी केस के बाद हमारे भारत देश में जनहित याचिका की शुरुआत हुई।

यह केस इंदिरा गांधी की हैं। इंदिरा गांधी की लोकसभा में जीत को लेकर इलाहाबाद कोर्ट में मुकदमा दर्ज किया गया था। इंदिरा गांधी को चुनाव में गड़बड़ी का दोषी पाया गया था। न्यायमूर्ति सिन्हा ने यह फैसला दिया की इंदिरा गांधी अगले छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकती।

बाद में इंदिरा गांधी सुप्रीम कोर्ट में गई। सुप्रीम कोर्ट में इंदिरा गांधी को रिलीफ नहीं मिला। इसके बाद इंदिरा गांधी ने अलग रास्ता अपनाने का निर्णय लिया। देश के आंतरिक सुरक्षा का हवाला दिया और आपत्काल की घोषणा की गई। इस आपत्काल में बहुत नेताओं को जेल में डाला गया। जैसे की मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेई और अन्य नेता।

मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेई और अन्य नेताओं को बिना मुकदमे के हिरासत में लिया गया इसलिए उन्होंने उच्च न्यायालय न्यायालय में चुनौती दी। इस मामले में मीसा एक्ट के तहत कार्यवाही की गई। इनके एक वकील का नाम था शिवकांत शुक्ला।

इनमें से ज्यादा से ज्यादा नेताओं को उच्च न्यायालय में राहत मिली। उच्च न्यायालय में व्यक्तीगत स्वतंत्रता को वरीयता दी गई। आगे यह केस सुप्रीम कोर्ट में गई। सुप्रीम कोर्ट में इस केस को एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला यह नाम मिला। सुप्रीम कोर्ट ने एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला इस मामले में दी गई वरीयता को खारीज कर दिया। यह फैसला 5 न्यायाधीशों के बेंच द्वारा सुनाया गया था। इसमें से 4 जज इस फैसले के पक्ष में थे और 1 जज इस फैसले के खिलाफ थे‌। उन्होनें इस फैसले के खिलाफ अपना मत दिया।

उन्होंने कहा की संविधान के अनुच्छेद 21 में जो जीवन का अधिकार दिया हैं उससे किसी को भी वंचित नहीं किया जा सकता। यह आदेश देने के बाद 42 साल के बाद पुट्टस्वामी केस में सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में फिर एक बार व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बहाल किया।

FAQ

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 क्या हैं ?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 बहुत महत्वपूर्ण हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के संबंधित हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के सिवाय किसी भी व्यक्ती को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं रखा जाएगा।

एके गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1950) इस केस में कोर्ट ने क्या निर्णय दिया ?

एके गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1950) इस मामले में अदालत ने यह निर्णय दिया की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अर्थ भौतिक शरीर की स्वतंत्रता यह हैं। इस वजह से इसमें अनुच्छेद 19(1) के तहत दिए हुए अधिकार शामिल नहीं हैं। व्यक्तिगत स्वतंत्रता में कुछ अधिकारों को शामिल माना जाता था जैसे की खाने का अधिकार, सोने का अधिकार आदी। स्वतंत्र रुप से घुमने का अधिकार भी मामुली था। यह किसी के भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में सम्मिलित नहीं था।

इस पोस्ट में हमने आपको भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 क्या हैं इसके बारे में जानकारी दी। हमारी पोस्ट शेयर जरुर किजिए। धन्यवाद !

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