भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 क्या हैं ? What Is Article 359 Of Indian Constitution?

What Is Article 359 Of Indian Constitution? हॅलो ! इस पोस्ट में हम आपको भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 क्या हैं इसके बारे में जानकारी देने वाले हैं। हर देश को सुचारू रुप से चलवाने के लिए संविधान की आवश्यकता होती हैं। संविधान को देश का सर्वोच्च कानून माना जाता हैं। देश के संचालन और विकास में संविधान के द्वारा महत्त्वपूर्ण भुमिका निभाई जाती हैं।

What Is Article 359 Of Indian Constitution?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 क्या हैं ? What Is Article 359 Of Indian Constitution?

हर देश में संविधान की बहुत जरूरत होती हैं। जब भारतीय संविधान को बनवाया गया था तब भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थी। अब भारतीय संविधान में 448 अनुच्छेद हैं और 12 अनुसूचियां हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 बहुत महत्वपूर्ण हैं।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 अनुच्छेद 20 और 21 छोड़कर बाकी सभी मौलिक अधिकारों से संबंधित हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 क्या हैं इसके बारे में विस्तार में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी पोस्ट अंत तक जरुर पढिए।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 क्या हैं ?-

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 बहुत महत्वपूर्ण हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 अनुच्छेद 20 और 21 छोड़कर बाकी सभी मौलिक अधिकारों से संबंधित हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 359 के द्वारा राष्ट्रपती को यह अधिकार मिल जाता हैं की अनुच्छेद 20 और 21 छोड़कर सभी मौलिक अधिकारों को या किसी मौलिक अधिकार के प्रभावशीलता को वह खत्म कर सकते हैं। यह अनुच्छेद राष्ट्रीय आपातकाल लगने के बाद स्वयं ही लागू नहीं होता।

यह अनुच्छेद लागू करना चाहिए की नहीं यह राष्ट्रपती के इच्छा पर निर्भर होता हैं। इस अनुच्छेद के द्वारा मौलिक अधिकारों का निलंबन नहीं होता बल्कि सिर्फ उनकी प्रभावशीलता खत्म होती हैं। यह अनुच्छेद बाह्य और आंतरिक दोनों भी आपतकाल में लागू हो सकता है। यह अनुच्छेद पुरे देश में या देश के किसी हिस्से में लागू किया जा सकता है।

एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस –

एडीएम जबलपुर केस को बंदी प्रत्यक्षीकरण केस इस नाम से भी जाना जाता है। यह केस आपातकाल के समय की हैं। इंदिरा गांधी सरकार के द्वारा 25 जून 1975 को आपातकाल लगवाया गया था। यह आपातकाल 25 जून 1975 से लेकर 21 मार्च 1977 तक 21 महिनों के लिए लागू रखा था।

उस समय सरकार द्वारा लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए थे। उसी मौलिक अधिकारों को बचाने के लिए एडीएम जबलपुर यह केस लडा़ गया था। इस केस में सुनाया गया हुआ फैसला ऐतिहासिक था। यह मौलिक अधिकारों को बचाने के लिए लडा गया हुआ ऐतिहासिक केस हैं।

यह केस उन केसों में से एक हैं जिसके वजह से न्यायिक प्रणाली में जनहित याचिका की जरूरत महसूस होने लगी। इसी केस के बाद हमारे भारत देश में जनहित याचिका की शुरुआत हुई।

यह केस इंदिरा गांधी की हैं। इंदिरा गांधी की लोकसभा में जीत को लेकर इलाहाबाद कोर्ट में मुकदमा दर्ज किया गया था। इंदिरा गांधी को चुनाव में गड़बड़ी का दोषी पाया गया था। न्यायमूर्ति सिन्हा ने यह फैसला दिया की इंदिरा गांधी अगले छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकती।

बाद में इंदिरा गांधी सुप्रीम कोर्ट में गई। सुप्रीम कोर्ट में इंदिरा गांधी को रिलीफ नहीं मिला। इसके बाद इंदिरा गांधी ने अलग रास्ता अपनाने का निर्णय लिया। देश के आंतरिक सुरक्षा का हवाला दिया और आपत्काल की घोषणा की गई। इस आपत्काल में बहुत नेताओं को जेल में डाला गया। जैसे की मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेई और अन्य नेता।

मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेई और अन्य नेताओं को बिना मुकदमे के हिरासत में लिया गया इसलिए उन्होंने उच्च न्यायालय न्यायालय में चुनौती दी। इस मामले में मीसा एक्ट के तहत कार्यवाही की गई। इनके एक वकील का नाम था शिवकांत शुक्ला। इनमें से ज्यादा से ज्यादा नेताओं को उच्च न्यायालय में राहत मिली।

उच्च न्यायालय में व्यक्तीगत स्वतंत्रता को वरीयता दी गई। आगे यह केस सुप्रीम कोर्ट में गई। सुप्रीम कोर्ट में इस केस को एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला यह नाम मिला। सुप्रीम कोर्ट ने एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला इस मामले में दी गई वरीयता को खारीज कर दिया। यह फैसला 5 न्यायाधीशों के बेंच द्वारा सुनाया गया था। इसमें से 4 जज इस फैसले के पक्ष में थे और 1 जज इस फैसले के खिलाफ थे‌। उन्होनें इस फैसले के खिलाफ अपना मत दिया।

उन्होंने कहा की संविधान के अनुच्छेद 21 में जो जीवन का अधिकार दिया हैं उससे किसी को भी वंचित नहीं किया जा सकता। यह आदेश देने के बाद 42 साल के बाद पुट्टस्वामी केस में सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में फिर एक बार व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बहाल किया।

अनुच्छेद 358 और अनुच्छेद 359 में अंतर –

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 358 और 359 में राष्ट्रीय आपातकाल लगने के वजह से मौलिक अधिकारों पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा इसके बारे में जानकारी दी है। जब देश में आपातकाल की घोषणा की जाती हैं तब देश में अनुच्छेद 358 लगता हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में जो मौलिक अधिकार हैं उन्हें निलंबित किया जाता हैं। अनुच्छेद 359 बाकी के (अनुच्छेद 20 और 21 छोड़के) मौलिक अधिकारों से संबंधित हैं।

FAQ

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 क्या हैं ?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 बहुत महत्वपूर्ण हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 अनुच्छेद 20 और 21 छोड़कर बाकी सभी मौलिक अधिकारों से संबंधित हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 359 के द्वारा राष्ट्रपती को यह अधिकार मिल जाता हैं की अनुच्छेद 20 और 21 छोड़कर सभी मौलिक अधिकारों को या किसी मौलिक अधिकार के प्रभावशीलता को वह खत्म कर सकते हैं।

अनुच्छेद 358 और 359 में क्या अंतर है ?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 358 और 359 में राष्ट्रीय आपातकाल लगने के वजह से मौलिक अधिकारों पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा इसके बारे में जानकारी दी है। जब देश में आपातकाल की घोषणा की जाती हैं तब देश में अनुच्छेद 358 लगता हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में जो मौलिक अधिकार हैं उन्हें निलंबित किया जाता हैं। अनुच्छेद 359 बाकी के (अनुच्छेद 20 और 21 छोड़के) मौलिक अधिकारों से संबंधित हैं।

इस पोस्ट में हमने आपको भारतीय संविधान का अनुच्छेद 359 क्या हैं इसके बारे में जानकारी दी हैं। हमारी पोस्ट शेयर जरुर किजिए। धन्यवाद !

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